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"नाग नथैया लीला" ; मां गंगा बनीं यमुना , दिखा आस्था के अटूट संगम का नजारा ,जयकारों से गूंज उठी काशी

 
वाराणसी। विश्व की प्राचीन नगरी काशी में 494 साल से चली आ रही अद्भुत 'नाग नथैया लीला' का आयोजन  सोमवार को तुलसीघाट पर  किया गया। इसे देखने के लिए  बड़ी संख्या में देश-विदेश से आस्थावान लोग लीला स्थल पर पहुंचे,जहां पर पतित पावनी मां गंगा यमुना के रूप में देखी गईं और आस्था के अटूट संगम का श्रद्धालुओं ने आनंद लिया।

इसीलिए काशी को कहा जाता है अध्यात्म की नगरी और संस्कृति का केंद्र
बाबा विश्वनाथ की पूजा के साथ साथ मोक्षदायिनी काशी नगरी में हर देवी-देवता  पूजन-अर्च होता है ।और काशी की ज्यादातर लीलाओं को शुरू करने का श्रेय गोस्वामी तुलसी दास को जाता है। उन्होंने यहां न केवल श्रीरामचरित मानस की रचना की ,न केवल भगवान श्री राम की लीला शुरू कराई बल्कि उन्होंने श्री कृष्ण लीला की भी शुरूआत की। कृष्ण लीला की परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए "गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा " की ओर से तुलसीघाट पर सोमवार को नागनथैया लीला हुई। इसको देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं।


 कालिया के फन पर बैठे बंशी वादक कन्हैया के  बाल रूप को दर्शनार्थियों ने किया कैमरे में  कैद%3A
कालिया नाग के फन पर बांसुरी बजाते कान्हा का दर्शन की अनूठी झांकी हर किसी को भावविह्वल कर गई। इन अलौकिक पलों को अपने कैमरों और मोबाइल में कैद करने की होड़ मची रही। अखाड़ा गोस्वामी तुलसीघाट की ओर से ‘नाग नथैया’ के आयोजन की परंपरा साढ़े चार सौ साल से अधिक पुरानी है। काशी के लक्खा मेलों में शुमार नाग नथैया देखने के लिए दोपहर बाद से ही भीड़ जुटने लगी थी। शाम चार बजे तक अस्सी से लेकर तुलसीघाट, रीवाघाट भदैनी तक हुजूम उमड़ पड़ा था। 

 
मां गंगा बनीं जमुना, काशी बना बृंदावन, दर्शन के लिए उमड़ा श्रद्धालुओं का जनसैलाब%3A
लीला की एक झलक देखने के लिए घाट से लेकर छतों तक कहीं भी कदम रखने की जगह नहीं थी। यहां की गंगा कुछ समय के लिए यमुना में परिवर्तित हो गई और गंगा तट पर हजारों वर्ष पुरानी वृंदावन की प्रमुख लीला दोहराई गई। इस लीला में दि‍खाया गया कि‍ करीब सवा चार बजे कान्हा ने गेंद गंगा में फेंकी। सखाओं के मना करने के बाद भी जिद पर अड़े कन्हैया कदंब की डाल पर चढ़ गए और गेंद निकालने के लिए नदी में छलांग लगा दी। फिर कुछ देर तक  सखाओं ,श्रद्धालुओं और दर्शनार्थियों की सांसें थम गईं। कुछ देर बाद कालिया नाग के फन पर विराजमान भगवान कृष्ण बंशी बजाते बाहर आए तो जय-जयकार गूंज उठी। हर-हर महादेव की गूंज, डमरू की गड़गड़ाहट, आरती और भजन से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। कान्हा ने नदी की धारा में पूरा एक चक्कर लगाकर वहां मौजूद जनसैलाब को दर्शन दिया। बटुकाें ने आरती उतारी। सभी ने उनके चरणों में शीश नवाया और दर्शन कर धन्य हुए।
 
गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा के अध्यक्ष और संकटमोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वंभरनाथ मिश्र के मुताबिक, दुनिया में कहीं भी भगवान श्रीकृष्ण की जल लीला देखने को नहीं मिलती है, लेकिन सिर्फ बनारस में इसका मंचन होता है। वहीं, कुंवर अनंत नारायण सिंह भी शाही पोशाक में बजरे पर सवार होकर लीला देखने पहुंचे।

​​​​​रिपोर्ट %3Aसुदीप राज

Posted On:Tuesday, November 9, 2021


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